जाने बाबा विशु राउत मंदिर का रहश्य और कहानी

बाबा विशु राउत मंदिर पचरासी :- बाबा विशु राउत मंदिर मधेपुरा जिले के चौसा प्रखंड से 8 किलो मीटर दूर पचरासी में है। हर सोमवार और शुक्रवार को वैरागन मेला में श्रद्धा एवं भक्ति के साथ यहां दुग्धाभिषेक किया जाता है। यहां 14 अप्रैल से चार दिवसीय विशाल मेले का आयोजन किया जाता है । यह मेला प्रत्येक वर्ष मेष सतुआ सक्रांति के अवसर पर लगता है । मेले में बिहार के कोने-कोने से लोग आते हैं। दूसरे राज्यों से भी श्रद्धालु आते हैं। वे बाबा विशु राउत की प्रतिमा पर दुग्धाभिषेक करते हैं। लाखों श्रद्धालुओं के दुग्धाभिषेक से ऐसा लगता है जैसे मंदिर के बाहर दूध की नदी बह रही हो। लेकिन इस स्थल की महिमा और भक्तों की उमड़ने वाली भीड़ को देखते हुए पांच साल पहले 2018 में इस मेला को राजकीय महोत्सव का भी दर्जा दिया गया था।

बाबा विशु राउत कौन थे कहा से आये थे :-बाबा विशु राउत का जन्म भागलपुर जिले के सबौर में हुआ था। बाबा विशु राउत के पिता का नाम बालजीत गोप है। विशु तीन भाई बहन थे। विशु का लालन पालन सबौर में हुआ था। बाबा विशु राउत जब 13 वर्ष के थे तभी इनका विवाह रूपवती नामक कन्या से नवगछिया के सिमरा गांव में हुआ था। बाबा विशु के पिता का निधन के बाद गृहस्थी का सारा काम बाबा विशु के कंधों पर आ गया था चैत माह में चारा नहीं मिलने पर वे काफी परेशान होने लगे थे ।उसी वक्त अपनी पांच रास गाय यानि गर्ववती गाय को लेकर गंगा पार करके चौसा के लौआलगान के विच जंगल में अपना बथान यानि पशुपाला को स्थापित किया जो बाद में पचरासीस्थल के नाम से जाना गया।

इस जंगल में चारे की कमी नहीं थी विशु के बथान यानि पशुपाला के बगल में घघरी नदी बहती थी इस नदी में मोहन गोढी नाम का व्यक्ति मछली पकड़ता था जिससे बाबा विशु राउत की दोस्ती हो गई। कालान्तर में विशु द्वारा लाये गये गायों की संख्या 90 लाख हो गई थी। सभी गायों को बाबा विशु मोहन के जलकर में ही पानी पिलाया करता था। जब बाबा विशु 20 वर्ष का होने पर इनके घर सबौर से द्विरागमन(गौना)कराने की खबर आया था ,तब बाबा विशु जाने के पहले गायों की जिम्मेवारी अपने छोटे भाई अवधा एवं चरवाहा नन्हुवा को सौंप दिया।

इधर विशु के दोस्त मोहन ने बथान पर आकर अवधा एवं चरवाहा नन्हुवा से कहा कि कल मेष सतुआ` सक्रांति है। इसके लिए दूध चाहिए। अपने सभी प्रियजनों को घघरी घाट पर छांकी पीने का निमंत्रण दिया है।दूध के लिए मोहन ने अवधा एवं चरवाहा नन्हुवा को डरा-धमका कर मोहन ने सभी गायों के बछड़ों को खूटें में बांध दिया और नहीं खोलने की हिदायत देकर चला गया। सभी बछड़े भूख से छटपटाने लगे। गायों की दुर्दशा को देखकर अवधा एवं नन्हुवा विलख-विलख कर रोने लगे। वे अपने मालिक को गायों की सुरक्षा हेतु पुकारने लगे।
बाबा विशु के सपने में मां गहैली ने आकर कहा ‘तू यहां अपनी पत्नी के साथ है और वहां बथान यानि पशुपाला पर तुम्हारे प्रिय पशु बेमौत मारे जा रहे हैं। तू अभी जा और अपने पशुओं की रक्षा कर। विशु अपनी पत्नी को सोते छोड़ आधी रात्रि में पचरासी स्थल पहुंचे।

नन्हुवा ने अपने मालिक से लिपट-लिपट कर मोहन की काली करतूतों के बारे में बताया । पशुओं की हालत देखकर उन्होनें गहैली माता को स्मरण किया। गहैली माता के चमत्कार से गाय एवं बछड़े स्वस्थ होकर चलने लगे। विशु रात भर चलने के कारण बथान पर जाकर सो गये। मोहन अपने साथियों के साथ बथान यानि पशुपाला पर आया और सभी गाय-बछड़े को खुला देख कर आग बबूला हो गया। मोहन और चरवाहा नन्हुवा के बीच मारपीट होने लगा। मोहन के चिल्लाने पर विशु ने छोड़ देने का आदेश दिया। मोहन लंगराते-लंगराते अपने घर लौआलगान पहुंचा और सारी बात अपनी मां बहुरा योगिन को बताया जो की एक जादूगरनी थी।

मोहन की मां ने गुस्से में आकर मां बागेश्वरी को स्मरण किया। बहुरा ने जादू से एक बाघ को विशु के बथान पर भेज दिया। संयोग से विशु उस समय गहरी नींद में सो रहे थे। करूणा नाम का सांड था जो बाघ को देखते ही उससे भिड़ गया। बाघ करूणा सांड को मार कर विशु के जगने का इंतजार करने लगा। जब विशु जगा तो करूणा सांड को मरा देखकर बहुत दुःखी हुआ और गुस्से में आकर लाठी से बाघ को मार कर घघरी नदी में फेंक दिया।बाघ को मरा घघरी नदी में बहता देख बहुरा योगिन तिलमिला उठी। मृत बाघ की पत्नी को धिककारते हुए बोली तू भी जाओ,जिस तरह तुम्हें विधवा बनाया है विशु उसी तरह विशु की पत्नी को भी विधवा बना दो।

इतना सुनते ही बाघिन विशु के बथान पर बाबा विशु को जाकर ललकारने लग गयी। तब बाबा विशु ने बाघिन से कहा कि वह औरत जाति का सम्मान करता है। इसलिए वह उसकी हत्या कर अपने पति का बदला लें सकती है। इतना कहकर बाबा विशु उत्तर -दक्षिण दिशा में सो गये और कुल देवी गहैली माता का स्मरण करते हुए अपने प्राण को त्याग दिये थे। फिर उसी वक्त नब्बे लाख गायें डकारती हुई विशु के पार्थिव शरीर के पास पहुंची और उनके शव को चारों ओर से घेर लिया। सभी गायें अपने स्तनों से दूध की धारा बहाने लगी,जो नदी की धारा बन गयी थी ।

दूध की धारा में बाबा विशु का शव विलीन हो गया था। तब से वहां के ग्रामीणों तथा चरवाहों ने मिलकर बाबा विशु का एक मंदिर का निर्माण किया और पूजा-अर्चना तथा दूध अर्पित करने लगे। बाबा विशु के प्रति भक्तों में आज भी वही आस्था है जो की वर्षों पूर्व में थी। बिहार के अलावा उत्तर प्रदेश,पश्चिम बंगाल और नेपाल के इलाके से भक्तजन कच्चा दूध बाबा की समाधि पर प्रतिवर्ष चढ़ाने आते हैं। आज के समय में बाबा विशु राउत का भव्य मंदिर का निर्माण हो गया है ,जो देखने में खुबसुरर और आकर्षित है मंदिर के पीछे घघरी नदी बहती है।
है।

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