होली 2025 :- आईये जाने होली त्योहार कब है।

हिंदू कैलेंडर का आखिरी महीना फाल्गुन आज से प्रारंभ हो गयी है। फाल्गुन का महीना पर्व-त्योहारों के लिए भी बहुत खास माना जाता है। होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय और नेपाली लोगों का त्यौहार है। फाल्गुन माह का शुरवात होते ही लोगों के मन में हर्ष और उल्लास छा जाता है क्योंकि इसी महीने में हिंदू धर्म के रंगों का त्योहार होली मनाया जाता है। होली हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।

होली रंगों का तथा हँसी-खुशी का त्योहार है। भारत का एक प्रमुख और प्रसिद्ध त्योहार होली है, जो आज विश्वभर में मनाया जाता है। इस साल होली का त्योहार 14 मार्च, 2025 को दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा । होली से एक दिन पहले होलिका दहन या छोटी होली के रूप में मनाया जाता है । 13 मार्च दिन गुरुवार को मनाया जाएगा। होली के एक दिन पहले मिट्टी यानि कीचड़ की होली खेलते है। होली रंग और हँसी- खुसी का त्योहार है। होली का त्योहार पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के पूर्णिमा को मनाया जाता है।

होली से पहले महाशिवरात्रि मनाया जायेगा। इस दिन देवों के देव महादेव और मां पार्वती का विवाह हुआ था। महाशिवरात्रि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि में मनाया जाने वाला त्यौहार है। यह भगवान शिव का प्रमुख पर्व है। माना जाता है कि सृष्टि का प्रारम्भ इसी दिन से हुआ था। पौराणिक कथाओं के मुताबिक इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग के उदय से हुआ हैं । हिन्दू पंचांग के मुताबिक महाशिवरात्रि फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 26 फरवरी 2025 को मनाया जायेगा।

होलिका दहन :- होलिका दहन होली के एक दिन पहले मनाया जाता हैं। हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसकों होली के एक दिन पहले यानी पूर्व सन्ध्या को होलिका का सांकेतिक रूप से दहन किया जाता है। होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष होलिका दहन 13 मार्च दिन गुरुवार को मनाया जाएगा और होली 14 मार्च, 2025 को दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा।

कहनी :- हिरण्याकश्यप का ज्येष्ठ पुत्र प्रहलाद जो भगवान विष्णुका भक्त था हमेसा भगवान विष्णुका जाप किया करता था । हिरण्याकश्यप के मना करने और समझाने के बाद भी प्रहलाद विष्णु का जाप करते रहा। दैत्य पुत्र होने के बावजूद नारद मुनि की शिक्षा के परिणामस्वरूप प्रह्लाद महान नारायण भक्त बना। असुराधिपति हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने की भी कई बार कोशिश की परन्तु भगवान नारायण स्वयं उसकी रक्षा करते रहे और उसका बाल भी बांका नहीं हुआ। असुर हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को भगवान शंकर से ऐसी चादर मिली थी जिसे ओढ़ने पर अग्नि उसे जला नहीं सकती । हिरण्यकश्यप की बहन होलिका उस चादर को ओढ़कर प्रह्लाद को गोद में लेकर चिता पर बैठ गई। दैवयोग से वह चादर उड़कर प्रह्लाद के ऊपर आ गई, जिससे प्रह्लाद की जान बच गई और होलिका जल गई और तब से बुराई पर अच्छाई की जीत की खुशी में होलिका दहन को होली से पहले मनाया जाता है।

 

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